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Saturday, 3 May 2014

प्रेम ही चहुँओर बरस रह्यो है !! ऐ सखी मेरी दिल की व्यथा सुन !! क्या कहना चाहूँ मन की कथा सुन !! अब दुनिया के वंयंग्य बाण भी फूल से लगे हैं !! यह ज़हर भी अमृत लगे है !! कोई मान- अपमान का आभास ही नहीं होता तनिक भी !! इस दुनिया से विमुख मैं हरि चरणन में मन को लगा बैठी हूँ !! वह भी जैसे मुस्कुरा कर मुझे और प्रेम पाश में बाँध रह्यो है !! अब छोड़ दिया जग के सामने शीश झुकाना !! अब तो बस ईश्वर ही प्रियवर लागे है !! सुन मेरा गीत जो मेरे प्रेम को अर्पण !!

मैं जो चखूँ सखी , अमृत लागे ...
ये जग क्यूँ मुझको अमिय पिलाए ??
दमके मोरी ये काया निर्बल ....
चंद्र भी दूर खड़ा ललचाए ....
प्रेम का दंश जो लग जावे है .....
फिर विष से हम क्यूँ घबराएँ ??
यह ईश्वर मोहे प्रियवर लागे .,..
वो मंद मंद मन में मुस्काए .....
प्रीत चढ़ी है मेरी नस नस में .....
अब आकर कौन उपाय सुझाए ??
मैं तो हुई मदमस्त सखी री !!
अब तो बस सियाराम बचाए .....
जा कह दे सगरी दुनिया से .....
अब हम हो गए जग से पराए ....!!
कोई दुख नहीं छू अब सकत है ...
कोई मद हमें ना भरमाए ....
ना ही चाहूँ नाम क़सीदे ....
क्यूँकर जग को हम शीश नवाँए ??

पूजा रानी सिंह 

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