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Tuesday, 29 April 2014

कहानी " यह जीवन अब और नहीं "

कहानी " यह जीवन अब और नहीं "

" कुछ नहीं है इस जीवन में !!  सब शून्य हो गया है , सबका साथ छूट गया है ।  मैं भी तो जैसे अनंतकाल से भटक रहा हूँ , समय भी नए खेल रच रहा है ,  हर बार हस्पताल जाता हूँ इस गरज से  कि देह छूट जाए  पर , फिर वही ग्लूकोज़ नली से चढ़ा देते हैं और दो दिन में घर वापस भेज देते हैं । वो तो भला हो हेल्थ इंश्योरेंस वालों का कि बेटे के पैसे बच जाते हैं  पर , अब नहीं जीना चाहता हूँ !! कितना जिऊँ मैं ? पत्नी तीस वर्ष पहले साथ छोड़ गई , अब तो बड़ा बेटा भी नहीं रहा ।  दिल का दौरा पड़ा था उसे । मेरे सारे मित्र , संगी - साथी , सब बरसों पहले एक - एक करके साथ छोड़ गए । बस ख़बर मिल जाती थी मुझे  !! हर रोज़ अपनी डायरी लेकर लिखता रहता हूँ । अब तो जैसे रात को पन्ने भी चारों तरफ़ नाचते रहते हैं !!  याददाश्त का तो ऐसा है कि बचपन की बात अभी तक याद है  बस , शादी के बाद से नौकरी की हर बात भूल गया । कितनी कंपनी में कब काम किया याद ही नहीं रहा  !  कितना कमाया पता नहीं  ! बस पेँशन के लिए बेटा साइन ले लेता है  और अब तो बैंक जाकर हाज़िरी देनी पड़ती है कि ज़िंदा हूँ पेँशन बंद मत करो !!

छोटा बेटा सब समझता है , पूरी तल्लीनता से मेरी सेवा कर रहा है । वह जानता है कि मैं ज़िंदा रहूँगा तो पेंशन मिलती रहेगी सो , कोई कसर नहीं छोड़ता है दवा दारू में !  पर मेरी कोई नहीं सुनता । सौ से ऊपर सावन देखें मैंने , बचपन से जवानी तक का सारा वाक़या याद है मुझे । वो साइफन के बाँध पर मछली पकड़ते थे हम । एक बार बंसी में मोटी मछली फँसीं थी । सारे दोस्तों ने मिलकर बाहर निकाली बंसी ।  नरकंकाल निकला था !!  कितना डर गए थे हम !! भूत - भूत चिल्लाते वापस गाँव की ओर सब भाग निकले थे । ख़ूब साबुन लगा-लगाकर मल-मलकर नहाए  पर , भूत तो जैसे पीछे ही पड़ गया था ।  कई रात डरावने सपने आते रहे थे । अब तो नींद ही नहीं आती । रात को पड़ा रहता हूँ निर्जीव सा  । नियम से रामखेलावन या छोटा बेटा सहारा देकर हर तीन घंटे पर करवटें बदल देता है और पत्नी का तो अब चेहरा भी याद नहीं  !!  कैसी दिखती थी वो ? कैसा मुस्कुराती थी ?  बस यह ध्यान है कि वो जल्द ही बूढ़ी हो गई थी । नाती -पोता , घर परिवार में उलझी रहती थी सो , ध्यान से उसके चेहरे की झुर्रियाँ भी नहीं पढ़ पाया ।  पर मेरा ख़ूब ख़याल रखती थी । मेरे कपड़े , जूते , पैंट - शर्ट  सब आख़िरी समय तक सहेज कर रखती रही  । फिर जाने कब साथ छोड़ गई वो !! मैं तो रो भी नहीं सका था  ।

.....और अब रोने का मन ही नहीं करता । मुझे जीवन से परहेज़ हो ऐसी बात नहीं !! पर कितना जिऊँ ? शरीर का साथ नहीं मिलता  । वो दिन और थे जब कभी अमरूद और आम के पेड़ पर झट से चढ़ जाता था । वो शायद गुलाब काका ही थे जो बाग़ की रखवाली करते थे !  एक बार पकड़ा गया तो कान पकड़कर देविन्दर बाबा के पास ले गए । पूरा गाँव डरता था उनसे । उनकी खड़ाऊँ की आवाज़ सुनते ही बच्चे गली में दुबक जाते थे । फिर मेरी हालत तो ? पैंट गीली हो गई थी मेरी । उन्होंने हँसते हुए हाथ में दो अमरूद और आम पकड़ाकर घर भेज दिया था । सारे बच्चों ने मेरा ख़ूब मज़ाक़ उड़ाया था । मेरा नाम फिसड्डीलाल पड़ गया था । पूरे  दस दिन तक घर में दुबका रहा था मैं !!

......फिर पढ़ने में मन लगा लिया मैंने । बस बैठकर गणित में उलझा रहता था । सारे अंकों के वर्गफल निकालता रहता या नए समीकरण बनाता रहता । पूरे गाँव में सबसे अच्छी अँग्रेजी थी मेरी । दूर कहीं भी गाँव में शादी ब्याह होता तो मुझे गाड़ी -भाड़ा देकर ले जाते कि अँग्रेजी में कुछ भी बोल देना हमारी इज़्ज़त बढ़ जाएगी । मैंनें भी इंडिया इज माई कंट्री वाला निबंध पूरा रट लिया था । सीना तानकर एक इशारे पर गर्व से खड़ा हो जाता और पूरे जोश से एक साँस में बिना रुके दस मिनट तक बोलता रहता । लोग ख़ूब ख़ुश होकर ताली बजाते । बड़ा विद्वान है , सबकी ज़ुबान पर यही होता बस बाऊजी को यह सब पसंद नहीं था । उन्हीं दिनों पहली बार राजेन्द्र प्रसाद जी का भाषण सुना । मैंने भी सरकारी नौकरी करने का मन बना लिया । बहुत मेहनत की , अख़बार ख़रीदने के लिए साइकिल से रोज़ शहर जाना पड़ता था । मेहनत रंग लाई । सरकारी विभाग में बीडिओ नियुक्त हुआ । सबलोग मुंडा बीडिओ साहब कह कर बुलाते । ब्लौक पर बैठता शान से । यहीं से अफ़सरशाही और पैसे कमाने का दौर शुरू हुआ ।

.....उसके बाद की बातें याद नहीं । शायद ग़लत तरीक़े से कमाया होगा ? तभी उस समय की बातें याद नहीं पर , जल्द ही बहुत नाम और पैसा कमा लिया मैंने । हाँ ! गिनती मुझे याद नही । बस हर चीज़ मेरे पास थी । विवाह बचपन में ही हो गया था पर , पत्नी को पहली बार जब देखा तो जैसे सबकुछ गड़बड़ सा लगा । उस बेचारी को कभी मान सम्मान दिया ही नहीं । इसीलिए शायद पारिवारिक जीवन का समय भी याद नहीं आता पर एक घटना नहीं भूल सकता । मुझे कुछ आदिवासी क्षेत्र में अन्जान लोगों ने परिवार सहित घेर लिया था । उस समय कुछ सूझा ही नहीं जैसे जड़ हो गया था मैं । तभी मना करने के बावजूद पत्नी गाड़ी से बाहर निकली वह ज़रा भी नहीं डरी । सबसे कहने लगी - "  यह मुंडा साहब हैं , हम उनकी पत्नी । हम सब आदिवासी ही है । "  कहने लगी - " हमारे पिताजी का नाम जान लीजिए ।  वह पड़ोस के गाँव में प्रधानाध्यापक हैं । " परिचय जानते ही हमारे पूरे परिवार को इज़्ज़त से साथ में कुछ बंदूक़धारी लोगों ने पूरी सुरक्षा देते हुए घर पहुँचाया । उस दिन हमने पत्नी जी को पूरे मन से पहली बार देखा । इतनी बुरी भी नहीं थी वो ! मधुबाला सरीखी मुस्कान थी उनकी । ख़ैर , हमारा दाम्पत्य उछाल के साथ चल निकला ।

.....आज की दुनिया में तो जैसे ठहराव ही नहीं है । परपोता कानों में बडे भारी- भरकम स्पीकर लगाकर घूमता रहता है । कुछ बोलना चाहूँ तो बस मुस्कुरा भर देता है । हाथ हिलाकर कुछ बीच की दो उँगलियाँ मोड़कर " यो - यो परदादा जी " कहकर चल देता है । पंद्रह साल का है पर , लड़कियाँ मित्र हैं उसकी ।  बाइक चलाता है ,  बाल बडे अजीब से ऊपर से खड़े से रखता है पर , पिछले साल ही देख सका था मैं उसे । वो मेरा पोता अमरीका में हैं ना कई वर्षों से , बहुत कम ही देख सका हूँ । मेरे पोते की बहू आई थी , कैसा रिवाज चल निकला है कपड़ों का  ? पर मुझे अच्छा लगा इनकी दुनिया में मैं भी हूँ । सम्मान देते हैं ये लोग । मुझे हाथ जोड़कर नमस्ते कर रही थी । ख़ूब सारे आशीर्वाद दिए मैंने । जब उसने सहारा देकर उठाया मुझे , तो शर्म से लाल हो गया था मैं । मना करता रहा पर वो नहीं मानी । हमारे समय में तो  मजाल है कि पत्नी का पल्लू सिर से खिसक भी जाए  ! पिताजी के सामने हमारी पत्नी शायद ही कभी आई हो ।  मैं भी औरों की तरह तब उसे मालकिन कह कर बुलाता था । सो उसका नाम क्या था याद ही नहीं आता !

पर यहाँ तो बहू ही सारा घर बाहर सब संभालती है  । पिछले महीने बेटा नहीं था तो बहू ही लेकर गई थी बैंक । साथ में रामखेलावन भी था पर , बहू ही मेरे साथ रही । बैंक वाले भी सब बहुत इज़्ज़त करते हैं मेरी । मैनेजर कुर्सी छोड़कर मुझे प्रणाम करने आता है । बहू शान से सबको बताती है कि कितना ध्यान रखते हैं सब मेरा  । उसकी आँखों में चमक आ जाती है जब , सब तारीफ़ करते हैं कि वाक़ई में एक बुज़ुर्ग को संभालना बहुत बड़ी बात है । मेरे बाऊजी के समय में तो गाँव के सब लोग सेवा करने को लालायित रहते थे । मानों होड़ लगी रहती थी बारी बारी से सेवा करने की  पर , आजकल तो पैसा ही सेवा करवाता है । सोचता हूँ पेँशन ना मिलती तो क्या  ? पर नहीं यह सोचना भी नहीं  ! बेटे को पैसे की क्या कमी है ? पर अच्छा हुई पत्नी पहले चली गई ।  वो मेरे मित्र की पत्नी जो बयासी वर्ष की थी ।  बाथरूम में गिर गई थी । कूल्हे की हड्डी टूट गई बेचारी की ।  एक बार बिस्तर पर पड़ी तो फिर उठ नहीं पाई । सारा गंदा मैला बेचारे बच्चों को ही करना पड़ा । सुना है वह होश खो बैठी थी । कितने दिन सेवा करते बच्चे ? उसके मरने की दुआ करने लगे ।  मैं उस समय चल फिर लेता था । बस यूँ ही देखने गया तो जैसे नज़र ही नहीं उठी मेरी । एक फटी पुरानी चादर में आधा शरीर ढका हुआ था । बार बार कपड़े ख़राब हो जाने के डर से पूरे कपड़े भी नहीं पहनाए थे । खाने की गरज में हाथों में गंदगी लेकर खा रही थी । उफ !! नहीं देख सकी आँखें । बस नहीं चाहता कि मेरी भी यही स्थिति आए !!

क्या ग़लत है कि समय रहते ही चले जाना चाहता हूँ दुनिया से ? बस मेरी बात मान लीजिए । मुझे इस जीवन से मुक्त कर दीजिए ।
क्या मेरी इच्छा मायने नहीं रखती ?  पूरा जीवन अपने मन के अनुसार जिया मैंने । अब बस अंत भी अपनी मर्ज़ी से चाहता हूँ । कौन तय करेगा कि मैं कितना जिऊँ ?  क्या आप लोग ?  जिन्हें मेरे होने या ना होने से कोई फ़र्क़ नहीं पडता ? या मेरा परिवार जिसको जीवन मैंनें ख़ुद दिया ?  और इंतज़ार नहीं होता । समय की राह पर से करवटें लेकर अब इक अनजानी दुनिया का सफ़र करना चाहता हूँ बस , उस दुनिया का सफ़र मंगलमय हो यह कामना करें ....!! पर यह जीवन अब और नहीं ...!! अब और नहीं ... !! "

पूजा रानी सिंह कहानी

2 comments:

  1. बढ़िया ....... बेहतरीन !! मार्मिक !!

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    1. मुकेश कुमार सिन्हा ज़ी आप मेरे पहले ब्लॉग के पहले पाठक है ..सो मेरे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है आपका यह कमेन्ट .. बहुत धन्यवाद आपका ..

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