" पलाश के फूल "
" पलाश के फूल "
डलिया में चुन फूल पलाश के
बगिया से चली जाऊँगी ,
रोकेगा कितना भी माली
पगडंडी में खो जाऊँगी ।
राह न तकना मेरी पुष्पों
मैं तेरी वो बहार नहीं,
जाना बिखर सबके आँचल में
मुझसे करना प्यार नहीं ।
जहाँ घनेरी रात मिलेगी
पत्थर पर सो जाऊँगी ।
डलियाँ में चुन फूल पलाश के
बगिया से चली जाऊँगी ,
रोकेगा कितना भी माली
पगडंडी में खो जाऊँगी ।
तुम तो अपनी सोच रहे हो
मेरी विवशता को पहचानो ,
मिलेंगी तुमसे लाखों बहारें
मेरा अकेलापन जानो ,
जब कोई विरह की ज्वाला में होगा
ठंडी बयार बन गाऊँगी ।
डलियाँ में चुन फूल पलाश के
बगिया से चली जाऊँगी ,
रोकेगा कितना भी माली
पगडंडी में खो जाऊँगी ।
रहते हैं सब साथ में मेरे
पर मेरा कोई यार नहीं ,
प्यारी हूँ पूरी बगिया को
मुझको किसी से प्यार नहीं,
दु:ख जितने राहों में मिलेंगे
हर बार मैं चुनने आऊँगी ।
डलियाँ में चुन फूल पलाश के
बगिया से चली जाऊँगी ,
रोकेगा कितना भी माली
पगडंडी में खो जाऊँगी ।
पूजा रानी सिंह
is rachna me kai baar naye sandrbhon ko jodne ki anayaas koshish ki gai hai,jisse hame bachna chahiye,shabd vahi rakhen jisse uski khubsurti bani rahe.shubhkamnaon sahit.......
ReplyDeleteज़ी lalitya lalit sir आगे से ध्यान रखूंगी ... आपनें इस ओर मेरा ध्यान दिलाया ...मेरे लिए यह बहुत बड़ी बात है ..आपका शुक्रिया ...
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