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Sunday, 25 May 2014

प्रेम गीत

" प्रेम गीत "

मन विकल
प्रेम हुलसत
हिय में .....
अब कहो
कौन उपचार करें ?
किस ओर तकें
कहाँ ठौर करें ?
मेरे प्रियवर
कौन आधार धरें ..?
मन विकल ..............

ये नैन तरसते
काँपे हैं अधर ...
हर घड़ी मुड़ें
श्रृंगार करें ...
बस यही ललक
जागी इस पल
मेरे देव !!
मुझे स्वीकार करें .....
मन विकल ..............

लहकत जियरा
बहकत तन - मन ..
दहकत अंग- अंग
तड़पत  हर क्षण ..
बजी तेरी बाँसुरी
चल पड़ी बावरी
नहीं देखत काँटे
नहीं लगती चुभन ..
यही चाह लगी
बस प्रेम करें ..
मन विकल ...............

पूजा रानी सिंह



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