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Tuesday, 29 April 2014

कहानी " माँ के हाथ का खाना "

कहानी - " माँ के हाथ का खाना "
" नहीं माँ , पनीर की सब्ज़ी नहीं खाना मुझे । आज पिज़्ज़ा और्डर कर देते हैं । वो बररितो भी चलेगा , इटालियन में कुछ मँगवा लो ना । पर , प्लीज़ ये काजू पुलाव , पनीर की सब्ज़ी और खीरे का रायता मत परोस देना । "ख़ूब नाक मुँह सिकोड़ रही थी मेरी बिटिया खाने को देखकर । कितनी मेहनत और लगन से यह सब उसके जन्मदिन पर बनाया था कि प्रेम से खाएगी । पर उसका यह रूप देखकर तो जैसे अपने आप से ही घृणा होने लगी । हम कितनी ख़ुशी से यह सब खाते थे , और आज के ज़माने में तो जैसे हमारे साथ - साथ घर का बना हिन्दुस्तानी खाना भी आउटडेटेड हो गया है । भला हो इस इंटरनेट युग का , सबकुछ आईपैड पर फ़ोटो में देखकर और्डर कर लेते हैं । बिल तो माँ बाप ही भरेंगे ना ! ज़रूरत से ज़्यादा ही ग्लोबलाईजेशन हो गया है । माँ बनी मौम , भाई बना ब्रो , बहन बनी सिस , पापा बने डैड और घर का खाना बैड ! फिर मन मारकर सारा बनाया खाना समेटा और अपनी मेड आरती को पैक करके दें दिया कि चलो उसके बच्चे और परिवार खा लेगा । फिर वही बिटिया के मनपसंद जिलेटीनो , बुर्रित्तो और वेज क्राउन पिज़्ज़ा का और्डर दें दिया । ख़ुद की दिल दुखा तो दुखा पर बिटिया को दुखी नहीं देख सकती थी सो सबने मुस्कुराकर वही खाना खाया ।पतिदेव शायद मेरे दुखी मन को समझ चुके थे सो आधी रात को बोले - " शालिनी , तुम्हारे बनाए पनीर और काजू पुलाव की बडी ख़ुशबू आ रही है , रहा नहीं जा रहा । एक थाली में ले आओ ना ! साथ मिलकर खाते हैं। " मुझे कुछ - कुछ रुआँसी सी हँसी आई कि देखो मुझे ख़ुश करने के लिए आज ज़बरदस्ती खाना खाने को तैयार हैं जबकि लंच में जब यही सब पैक करती हूँ , तो कहते हैं कि - " क्या गँवारो का खाना बनाया है ? कुछ नया ट्राई किया करो ना हर रोज़ । औनलाइन देखकर बेक क्यूँ नहीं कर लेती ? सबसे महँगा माइक्रोवेव ख़रीदा है तुम्हारे जन्मदिन पर ! रोज़ नया खाना बनाया करो ना । "ख़ैर ! मैं वैसे ही लेटे - लेटे कह उठी - " सारा खाना तो मैंने आरती को दे दिया । सुबह बासी खाना तो कोई खाता ही नहीं है । सो क्या करती मैं ? " पति ने लंबी साँस ली कि जैसे बच गए हों ।सुबह जल्दी उठकर बच्चों को उठाने ही जा रही थी कि तभी दरवाज़े की डोरबेल बजी । " इतनी सुबह कौन आ गया " बड़बड़ाते हुए मैंने बालों का जूड़ा बनाया और दुपट्टा जल्दी से कंधे पर डालकर दरवाज़ा खोला ।सामने आरती खड़ी थी । उसने हाथों में एक बड़ा सा स्टील का डिब्बा पकड़ रखा था । अपना टूटी फूटी हिन्दी में बोलने लगी वो - " मैडम मैं आपके और साब और बच्चों के लिए स्वीट बनाया । आप खाएँगे ना ? " थोड़े संकोच के साथ उसने डिब्बा खोला । गरम- गरम भाप निकल रही थी , बड़ी ही अच्छी खाने की ख़ुशबू आ रही थी । कुछ पतले पतले पराँठों की शेप में मीठा भरकर बनाया था उसने । मेरा सोमवार का व्रत था आज पर मैं उसे मना नहीं कर पाई ।मैंने आरती से कहा - " रख दो टेबल पर । आज सबको यही नाश्ते में परोस दूँगी । मेरा व्रत है सो मैं नहीं खा पाऊँगी पर बहुत धन्यवाद कि तुम बनाकर लाई । " आरती की आँखों में चमक थी और होंठों पर मुस्कुराहट । वो फिर से टूटी - फूटी हिन्दी में कहने लगी - " मैडम आपका खाना बहुत ही अच्छी । मेरा बच्चा लोग , आदमी और मेरी अक्का ( सास ) सबको बहुत अच्छी लगी । ये डिश मेरा अक्का बनाया आपके लिए । "क्या कहूँ उस वक़्त आँखें नम हो आईं मेरी । आँसू छुपाते हुए उसको धन्यवाद कहकर दरवाज़ा बंद किया और चुपचाप बिस्तर पर आकर सो गई । मन ही नहीं किया कि सबको उठाऊँ और नाश्ता बनाऊँ ।लेटे - लेटे मन तो उदास था ही सो पता नहीं कब सोचते - सोचते आँख लग गई मेरी । काफ़ी देर के बाद बड़ी मीठी सी सुगंध आई और बच्चों का शोर सुना तो आँख खुल गई । पति और बच्चे झगड़ रहे थे । बिटिया कह रही थी - " पापा ...आप ही सारा खा जाएँगे या मुझे भी खाने देंगे । पापा ...मुझे एक मीठा पराँठा और दीजिए ना । " उधर बेटा कह रहा था - " पापा , मम्मी कितना यम्मी पराँठा बनाती है । मैं सारा ख़त्म कर दूँगा ।" पतिदेव भी कह रहे थे -" तुम्हारी माँ तो सो रही है । लगता है हमें सरप्राइज़ देने के लिए ये उसने रात में बनाया होगा । बहुत मेहनत करती है वो । एक तुम लोग हो कल रात का सारा खाना बर्बाद करवा दिया तुमने । "इधर से मैं निकली - " ये मैंने नहीं तुम लोगों की आरती आँटी ने बनाया है । कल सारा खाना मैंने उसे दे दिया था । उसे और उसके घरवालों को बहुत पसंद आया । सो वो आज हम सबके लिए ये मीठा डिश बनाकर लाई थी । "" मम्मी फिर मेड आँटी को बोलते है घर पर आकर रोज़ खाना बनाए । आपका एक ही खाना खाकर हम बोर हो चुके है ।" बिटिया का मुँह पापा ने बंद किया । मैं फिर से तुनककर अपने कमरे में आकर सो गई । लिविंग रूम से बच्चों के खिलखिलाने और पतिदेव के हँसने की आवाज़ आ रही थी । समझ गई मैं कोई फ़ायदा नहीं मेहनत करने से । अब होटल का ही खाओ रोज़ , जब बोर हो जाओ और मेरे खाने की याद आए तभी बनाऊँगी खाना घर मे मैं । चुपचाप उठी और सारे होटलों और रेस्टोरेंट के नंबर मोबाइल में सेव करने लगी ।पूजा रानी सिंह

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